न्याय के देवता है श्री सिद्ध बाबा चानो जी - Baba Sidh Chano Ji Pragpur Kangra



न्याय के देवता है श्री सिद्ध बाबा चानो जी

Baba Sidh Chano Ji Pragpur Kangra


जै जै बाबा सिद्ध चानो जी,
रखे तू रखावे तू,
वख्शे तू वख्शावे तू,
दुशमन की दौड़ से,
घोड़े की पौड़ से,
रक्षा करनी बाबा जी,
हिन्दु को काशी, मुसलमान को मक्का,
दुशमन को तेरे नाम का धक्का ।
जय बाबा सिद्ध चानो जी।
यह सिद्ध बाबा चानो की अरदास है। बाबा सिद्ध चानो के उत्तर भारत में बहुत से मंदिर हैं और उनकी मान्यता है। इनमें कुछ मंदिर जैसे आनंदपुर का मंदिर, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के प्रागपुर का मंदिर, बिलासपुर जिले के समैला का मंदिर और हमीरपुर जिले के पिपलु के मंदिर काफी प्रसिद्ध हैं। वैसे तो इन मंदिरों में हर दिन ही भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन मंगलवार और शनिवार के दिन यहां आने वाले भक्तों की संख्या कई गुणा बढ़ जाती है। यहाँ बाबा सिद्ध चानो को न्याय का देवता और सच्ची सरकार के रूप में पूजा जाता है। कहते हैं जिस किसी व्यक्ति को कहीं न्याय नहीं मिलता उसे बाबा के दरबार में न्याय जरूर मिलता है। मान्यता है जो कोई बाबा के दरबार में सच्ची श्रद्धा से आता है वह बाबा सिद्ध चानो के दरबार से कभी भी खाली हाथ नहीं जाता है।

बाबा सिद्ध चानो की कहानी:-


कहा जाता है द्वापर युग में कैलाश नाम का एक राजा मक्का मदीना में राज करता था। वह भगवान शिव जी का बहुत बड़ा भक्त था। राजा कैलाश के राज्य में हर कोई सुखी था परन्तु राजा उदास रहते थे। इसका कारण राजा के मंत्रियों ने जानना चाहा और राजा को पूछा कि आपके राज्य में हर कोई सुखी है, लेकिन फिर भी आप अन्दर ही अन्दर दुखी दिखाई देते हैं ऐसा क्यों है। तब राजा ने बताया कि मैं अपनी कोई सन्तान नही होने से दुखी हूं। इस पर मंत्रियों ने कहा कि आप भगवान शिव के इतने बड़े भक्त हैं आप भगवान शिव की शरण में जाओ शिव जी आपकी मनोकामना जरूर पूरी करेंगे। तब राजा कैलाश ने भगवान शिव जी की तपस्या करके उनको प्रसन्न किया और उनसे पुत्र प्राप्ति का वरदान मांगा। भगवान शिव ने उन्हें चार पुत्रों का वरदान दिया और कहा कि तुम्हारा सबसे छोटा पुत्र बलशाली और विशलकाय होगा।
उसके बाद राजा कैलाश की पत्नी ने चार पुत्रों को जन्म दिया। राजा के पुत्रों का नामकरण किया गया और उनके नाम कानो, बानो, सदुर और छोटे पुत्र का नाम चाणुर रखा गया। राजा के दरबार में रूक्को नाम की दाई थी जिसने इन बालकों का पालन पोषण किया । समय के साथ चारों बालक जवान हुए, चाणुर इन सब में बड़ा तेजस्वी और बलवान था। एक बार जब सभी भाई आपस में तलबारवाजी सीख रहे थे तो बड़े भाई की तलबार टूट गई । सभी बड़े भाइयों ने अपनी माता से शिकायत की कि चारुण ने बड़े भाई की तलबार तोड़ दी । जब यह बात माता ने सुनी तो उनको बहुत आश्चर्य हुआ कि छोटा बालक तलबार कैसे तोड़ सकता है । उन्होंने सभी वालकों को समझा बुझाकर बाहर भेज दिया। इसके बाद सभी भाई चाणुर से ईर्ष्या करने लगे।
एक बार माता अम्बरी ने चाणुर को बगीचे से फल लाने के लिए भेजा लेकिन फल पेड़ पर बहुत ऊंचे लगे थे। बालक चाणुर के फल तक नही पहुंच पाने के कारण वह पेड़ को जड़ से उखाड़ कर माता के पास ले आए यह देखकर माता हैरान रह गई। उनके भाईयों को यह डर सताने लगा कि अगर चाणुर की ताकत ऐसे ही बढ़ती गई तो एक दिन वह उनका राजपाठ छीन लेगा और उनको राज्य से बाहर निकाल देगा ।
इस पर बड़े भाइयों ने चाणुर को अपने से अलग करने की योजना बनाई। एक दिन चारों भाई शिकार खेलने के लिए निकले। सभी भाई चाणुर की ताकत से भली भांति परिचित थे। शिकार पर जाते समय उन्हें रास्ते में मरी हुई हाथिनी पड़ी मिली जिसके कारण रास्ता बंद था। सभी भाई वहीं रूक गए उन्हें उनकी बनाई योजना सफल होने के आसार नजर आने लगे। बड़े भाई ने कहा कि हम सबमें सबसे शक्तिशाली कौन है जो हाथिनी को रास्ते से हटा दे । तभी बड़े भाईयों की साजिश से अंजान चाणुर ने हाथिनी को उठाया और आसमान की ओर फैंक दिया। तभी बड़े भाइयों ने कहा कि तूने यह क्या कर दिया, मरे हुए जानवर को उठाना क्षत्रियों का कार्य नहीं है आज से तुम अछूत हुए , हमारे साथ उठने बैठने और खाने पीने का अधिकार तुम खो चुके हो। उसी समय बड़े भाइयों ने चाणुर को अपने से अलग कर दिया।
जब यह बात राजमहल पहुंची तो राजा ने तीनों भाइयों को समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह नही माने। इस बात पर एक सैनिक जिसका नाम चौपड़ था ने झूठी गवाही दी जिसके बाद यह फैसला किया गया कि चाणुर को चौथे पहर अपने साथ मिलने का अधिकार दिया जाए। अब चाणुर चौथे पहर का इंतजार करने लगे लेकिन जब चौथा पहर आया तो बड़े भाइयों ने चालाकी से यह कह दिया कि चौथे पहर नहीं वल्कि चौथे युग में मिलने की बात कही गई थी।

अपने भाइयों के इस व्यवहार से दुखी होकर चाणुर ने सन्यास ले लिया और जंगलों की ओर चल पड़े। ऐसा माना जाता है कि जंगलों में बाबा चाणुर ने भगवान शिव जी की घोर तप्सया की और शिव जी से अनेक शक्तियां हासिल कीं। भगवान शिवजी से प्राप्त शक्तियों से बाबा चाणुर ने दीन दुखियों की सहायता की और उन्हें न्याय दिलाया। जंगलों में भटकते हुए और तपस्या करते हुए बाबा सूर्य देश के राज्य में पंहुचे। वहां बाबा जी की भेंट सुर्य देश के राजा की कन्या लूणा से हुई । राजकुमारी लूणा ने बाबा चाणुर की सुंदर और सुडौल कद काठी देखकर उनसे विवाह करने का प्रस्ताव रखा लेकिन बाबा ने यह कहकर मना कर दिया कि मेरा रास्ता भक्ति का है। तब राजकुमारी लूणा ने उन्हें यह आश्वासन दिया कि वो उनके रास्ते में नहीं आएंगी तो बाबा जी शादी के लिए तैयार हो गए ।
भगवान श्री कृष्ण से हुआ था बाबा जी का मलयुद्ध
एक बार बाबाजी भक्ति में लीन थे तो मथुरा नरेश राजा कंश के गुप्तचरों ने बाबा जी को देखा और यह खबर राजा कंश को दे दी । उसके बाद कंश बाबा चाणुर के पास आए और देखा कि इतने बड़े शरीर वाला व्यक्ति कौन है , राजा ने एक एक करके अपनी सारी शक्तियां चाणुर पर चलाईं पर सारी शक्तियां नष्ट होती गईं । तब राजा ने सोचा कि इसे अपना मित्र बना लेना चाहिए जो बाद में देवकी के पुत्र श्री कृष्ण को हराने में मेरा साथ देगा।
राजा कंश ने बाबा को अपने दरबार चलने के लिए कहा । जब चलने के लिए उठे तो उनका शरीर इतना बड़ा हो गया कि बाबा जी का लंगोट फट गया तो बाबा जी ने राजा के सामने अपना तन ढकने का प्रस्ताव रखा । तब राजा ने 72 गज की पगड़ी दी लेकिन यह बाबा जी के शरीर को नही ढंक पाई। तब बाबा ने कहा कि आज से मैं शुद्र कहलाऊंगा । राजा कंश के दरबार पहुंचने पर कंश ने बाबा जी को अपनी सेना का सेनापति बना दिया।
राजा कंश ने देवकी के पुत्र भगवान श्री कृष्ण को मारने के लिए छिंज्जों का आयोजन करवाया । जहां बड़े बड़े पहलवानों को आमंत्रित किया गया।
श्री कृष्ण और भाई बलराम को भी अखाड़े में बुलाया गया । बाबा चाणुर श्री कृष्ण से मलयुद्ध करने अखाड़े में आए । 22 दिन तक युद्ध चलता रहा लेकिन चाणुर ने हार नही मानी। तभी श्री कृष्ण ने भाई बलराम से पूछा कि 22 दिन युद्ध चले हो गए हैं यह कौन है जो हार नही रहा है । जब कुछ पता नही चला तो श्री कृष्ण ने भगवान शिव जी का ध्यान किया। तब भगवान शिव जी ने बताया कि इसका भेद मैं नहीं जानता लेकिन एक पुरुष का भेद उसकी पत्नी के पास होता है। उसके बाद श्री कृष्ण मनमोहक छलिए का रूप धारण कर बाबा चारूण की पत्नी लूणा के पास पहुंच गए और बातों में उलझाकर बाबा चाणुर की पत्नि से भेद जान लिया। चाणुर की पत्नी लूणा ने श्री कृष्ण को बताया कि मेरे पति को दुनिया में कोई नही हरा सकता क्योंकि उसकी जड़ें पताल में हैं और चोटी आसमान में है। वह धरती और आसमान के बीच खड़ा है। भेद जानकर श्री कृष्ण वहां से चले गए ।
युद्ध दोबारा शुरू हुआ तो श्री कृष्ण ने चोटी को हटाने के लिए चूहे भेजे तो चाणुर ने उन्हैं मारने के लिए चिड़िया लगा दी। श्री कृष्ण ने पाताल से हटाने के लिए चींटियां भेजी तो बाबा चाणुर ने चींटियों को मारने के लिए मुर्गों को लगा दिया। जो आज भी बाबा के दरबार पर चढ़ाए जाते हैं। अब तक बाबा जी भगवान श्री कृष्ण को पहचान चुके थे। आखिर 22 दिन के बाद बाबा जी ने अपना घुटना जमीन पर लगा दिया और अपनी हार मान ली। उन्होंने श्री कृष्ण से क्षमा मांगी और घर चले गए।
घर जाकर उन्होंने अपनी पत्नी लूणा से क्रोध में आकर कहा कि आपने मेरा भेद पर पुरूष को बताकर अपना पति धर्म खो दिया है और जैसे ही बाबा जी ने उसे मारने के लिए हाथ उठाया उसी समय भगवान श्री कृष्ण मनमोहक रूप में प्रकट हुए। उन्होंने बाबा जी को रोका और कहा कि आपने कंश को मारने में मेरी सहायता की है इसलिए मैं तुम्हें बरदान देता हूं कि कलयुग में आप न्याय के देवता एवं सच्ची सरकार के रूप में जाने जाओगे। जिस भी व्यक्ति को कहीं भी न्याय नहीं मिलता हो वह आपके दर पर आकर न्याय पाएगा। जो भी आपके दर आएगा उसकी मनोकामना पूरी होगी और कोई भी आपके दर से खाली हाथ नहीं जाएगा। आप को सिद्ध चानो के नाम से जाना जाएगा। तभी से बाबा चाणुर को चानो सिद्ध के नाम से जाना जाता है। बाबा चाणुर ने क्रोधित होकर अपनी पत्नी लूणा को अभिशाप दिया कि तुम अगले जन्म में मक्खी के रूप धारण करोगी और तन्त्र मन्त्र विद्या सब तेरे नाम से चलेगी। उसके बाद बाबा जी ने अपनी पत्नी का परित्याग कर दिया और तपस्या करने जंगलों की तरफ चले गए ।
कहा जाता है सबसे पहले बाबा जी आनंदपुर साहिव पहुंचे थे, उसके बाद हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के प्रागपुर में प्रकट हुए और उसके बाद बाबा जी बिलासपुर जिले के समैला में प्रकट हुए जहां उनके भव्य मंदिर हैं। कोई भी व्यक्ति जो बाबा के दरबार में न्याय की पुकार के लिए जाते है बाबा जी उनकी सहायता अवश्य करते हैं।
जय बाबा सिद्ध चानो जी